मनुष्य को एक पंख उग आया। वह था विज्ञान का, आधुनिकता का पंख। उसने जोर लगाया और आकाश में उड़ान भरने लगा, पर अब उसे शांति नहीं थी। मन उद्विग्न था। तरह-तरह की प्रतिकूलताए उसे विक्षुब्ध करने लगी। उपलब्ध्यि कम थी, खोया कुछ अधिक जा रहा था। घबरा कर उसने प्रभु से प्रार्थना की-
‘‘हे प्रभो ! यह किस संकट में मैं आ फंसा ! अच्छा होता, हमें जन्म ही नहीं देते।’’
आकाश को चीरती भगवान की वाणी गुंजायमान हुई-
‘‘वत्स ! आत्मज्ञान का, अध्यात्म का एक और पंख उगा। अंतश्चेतना का विकास कर। तब ही संतुलन बनेगा।’’ ऐसा ही हुआ। विज्ञान और अध्यात्म दोनों साथ चलेंगे, तो ही सर्वांगीण प्रगति होगी।
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