साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
जिसका हर कण गुरू-गरिमा के गौरव गीत सुनाए।
जहा कर्मरत हर साधक हैं,
जहा नहीं आलस बाधक हैं,
जहा सभी अपने हैं, दिखते कोई नहीं पराए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
जहा साधना की माया हैं,
जहा हिमालय की छाया हैं,
पतितपावनी गंगा जिसके निकट सदा लहराए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
जहा कलुष कल्मष गल जाते,
साचे में साधक ढल जाते,
दिव्य फुहारों में हो जाते साधक स्वयं नहाए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
निष्प्राणो पर प्राण बरसते,
अनसोचे अनुदान बरसते,
हॅंसते-हॅंसते गए यहा से, जो उदास मुख आए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
पंथ हुए धुधले-मटमैले,
दिखते हैं संबंध कसैले,
ऐसे में बस शांतिकुंज ही मन को आस बॅंधाए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
शचीन्द्र भटनागर
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