सोमवार, 20 दिसंबर 2010

शांतिकुंज ही हमको आस बॅंधाए

साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,
जिसका हर कण गुरू-गरिमा के गौरव गीत सुनाए।
जहा कर्मरत हर साधक हैं,
जहा नहीं आलस बाधक हैं,
जहा सभी अपने हैं, दिखते कोई नहीं पराए
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,

जहा साधना की माया हैं, 
जहा हिमालय की छाया हैं,
पतितपावनी गंगा जिसके निकट सदा लहराए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,

जहा कलुष कल्मष गल जाते,
साचे में साधक ढल जाते,
दिव्य फुहारों में हो जाते साधक स्वयं नहाए
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,

निष्प्राणो पर प्राण बरसते,
अनसोचे अनुदान बरसते,
हॅंसते-हॅंसते गए यहा से, जो उदास मुख आए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,

पंथ हुए धुधले-मटमैले,
दिखते हैं संबंध कसैले,
ऐसे में बस शांतिकुंज ही मन को आस बॅंधाए।
साधो ! हमको शांतिकुज मन भाए,

शचीन्द्र भटनागर

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