एक साधु नदी के किनारे बैठे भजन कर रहे थे। थोड़ी देर बाद उनकी नजर एक बिच्छू पर पड़ी, जो पानी की बीच आकर फंस गया था। वह जितना बाहर निकलने की कोशिश करता, लहरें उसे उतना ही अंदर धकेल देती थीं । साधु ने धीरे से उगली आगे बढ़ाई और बिच्छू को अपनी हथेली के ऊपर लिया। इससे पहले कि वे उसे सुरक्षित किनारे पर रखते, बिच्छू ने उनको डंक मार दिया।
दूर खड़ा एक व्यक्ति यह दृश्य ध्यान से देख रहा था। वह कहने लगा-‘‘महाराज ! ऐसे नीच प्राणी पर दया करने से क्या लाभ ! आपने तो उसे बचाया और उसने आपको ही डंक मार दिया।
’’ साधु बोले-‘‘मित्र ! यदि बिच्छू का स्वभाव डंक मारना हैं, तो करूणा मेरा धर्म। जब वह अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता हैं तो मैं अपना स्वभाव कैसे बदल दू।’’
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