बुद्ध भगवान वेद एवं ब्राह्मणों के खिलाफ बोलते थे। उनकी टीका कर्मकांडो से जुड़े उस भ्रष्ट आचरण के प्रति थी, जिसमें हिंसा, बलि का जोर था। एक बार परिव्रज्या करते हुए योगवश वे एक ब्राह्मण के घर ही ठहरे। जब ब्राह्मण को मालूम हुआ कि यही वह बुद्ध हैं, तो उसने जी भरकर गालिया दीं और तुरंत निकल जाने को कहा।
धैर्यपूर्वक सुन रहे बुद्ध ने कहा-‘‘द्विजवर ! कोई आपके यहा आए और आप पकवान मिष्टान्नों से स्वागत करें और यदि वह स्वीकार न करे तो क्या आप उसे फेंक देते हैं ?’’
ब्राह्मण बोले-‘‘नहीं। फेकेंगे क्यों ? हम स्वयं ग्रहण करेंगे।’’
बुद्ध ने कहा-‘‘ तो फिर गालियों की यह भेंट आप स्वयं स्वीकार करें। आपकी, अपनी वस्तु आप ही ग्रहण करें।’’
यह कहकर बुद्ध मुस्करा कर अगले स्थान के लिए रवाना हो गये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें