सोमवार, 20 दिसंबर 2010

शरीर, बुद्धि व भावना

शरीर, बुद्धि व भावना में बहस छिड़ गई कि कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है ? शरीर बोला-‘‘मै। मनुष्य के अस्तित्व का प्रतीक हू। यदि मैं न रहू तो मनुष्य अपनी बुद्धि व भावना को प्रकट किस माध्यम से करे ?’’

बुद्धि बोली-‘‘मेरे न होने से मनुष्य का जीवन जंतु-जानवरों से जरा भी भिन्न न होगा और जो प्रगति-विकास के सरंजाम उसने जुटाए हैं, वे मूल्यहीन जान पड़ेंगे।’’

भावना बोली-‘‘मनुष्य के जीवन में समृद्धि और सुंदरता भावनाओं से हैं। उनके अभाव में उसमें व जड़ पदार्थ में क्या अंतर रह जाएगा ?’’

भगवान ने उनका वार्तालाप सुना और मुस्करा कर बोले-‘‘मनुष्य का जीवन तुम तीनों ही के कारण बहुमूल्य हैं। मैने उसे अतुल्य शरीर, असीम बुद्धि और अनंत भावनाए दी हैं, यदि वह तुम तीनों का समग्र व समुचित उपयोग कर सके तो उसका जीवन किसी वररदान से कम सिद्ध न होगा।’’

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