सोमवार, 20 दिसंबर 2010

विरासत

परिवार व साम्राज्य का त्याग करने के सात वर्ष पश्चात् पिता शुद्धोधन के अनुरोध पर भगवान बुद्ध ने पुनः कपिलवस्तु भ्रमण करने का निश्चय किया। कल के राजकुमार और आज के तथागत को देखने लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। मिलने वालों की कतार में उनकी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल भी थे। बुद्ध तो चित्त के बंधनों से परे हो चुके थे, पर ये स्वाभाविक था कि पति को देख यशोधरा के मन में मोह जागता। उन्हें इच्छा हुई कि किसी तरह बुद्ध राजमहल लौट चलें, इसलिए उन्होंनें राहुल से कहा कि वे बुद्ध से उनका पुत्र होने के नाते, अपनी विरासत की मांग करें। राहुल के उनसे प्रश्न करते ही, बुद्ध ने राहुल के मस्तक पर हाथ रखा और बोले-’’पुत्र ! मेरा धर्म ही मेरी धरोहर हैं और मेरी शिक्षाए मेरी विरासत। इन पर तुम्हारा भी उतना ही अधिकार हैं, जिना शेष शिष्यों का।’’ 
बुद्ध के वचनों ने राहुल के बाल मन को अंदर तक से झकझोर डाला और वे भी दीक्षा लेकर प्रव्रज्या पर निकल पड़े। आगे चलकर उनकी गणना भगवान के दस प्रमुख शिष्यों में हुई।

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