मनुष्य को सुयोग्य बनाने के लिए उसके मस्तिष्क को दो प्रकार से उन्नत किया जाता है।
(1) शिक्षा द्वारा
(2) विद्या द्वारा
शिक्षा के अन्तर्गत वे सब बातें आती हैं जो स्कूलों में कालेजों में, ट्रेनिंग कैम्पों में, हाट बाजार मे घर में, दुकान में, समाज में सिखाई जाती है। गणित, भूगोल, इतिहास, भाषा, शिल्प, व्यायाम, रसायन, चिकित्सा, निर्माण व्यापार, कृषि, संगीत, कला आदि बातें सीखकर मनुष्य व्यवहार कुशल, चतुर, कमाउ, लोकप्रिय एवं शक्ति सम्पन्न बनता है। विद्या द्वारा मनोभूमि का निर्माण होता है।
मनुष्य की इच्छा आकांक्षा, भावना, श्रद्धा, मान्यता, रुचि एवं आदतों के अच्छे ढॉंचे में ढालना विद्या का काम है। चौरासी लाख योनियों में घूमते हुए आने के कारण पिछले पाशविक संस्कारों से मन भरा रहता है उनका संशोधन करना विद्या का काम है।
शिक्षा का अर्थ है- सांसारिक ज्ञान। विद्या का अर्थ है-मनोभूमि की सुव्यवस्था। शिक्षा आवश्यक है, पर विद्या उससे भी अधिक आवश्यक है। शिक्षा बढ़नी चाहिए , पर विद्या का विस्तार उससे भी अधिक होना चाहिए अन्यथा दूषित मनोभूमि रहते हुए यदि सांसारिक सामर्थ्य बढ़ी तो उसका परिणाम भयंकर होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें