रविवार, 14 सितंबर 2008

आओ ! हम भी युगज्योति का स्पर्श पाएँ

सब तरफ हाहाकार-चीत्कार-चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार। साधन बहुत, शक्ति बहुत, किन्तु अन्धकार में उनका उपयोग कैसे हो ? जिन्हें कुछ चाहिये, कुछ-का-कुछ उठा ले रहे हैं। जिनके पास कुछ देने को हैं, उन्हे पता नहीं किसे देना हैं। हर कार्य और उसके लिये हर वस्तु, पर इससे क्या-सभी बेठिकाने-अनर्थ तो होगा ही-कारण अन्धकार। इस अन्धकार को दूर करो, इसे निकाल बाहर करो-चारों ओर यही चीख-पुकार। यही हमें सब ओर से घेरे हैं।

एक नन्हा सा दीपक मुसकराया-कहाँ हैं अंधकार ? हर तरफ से आवाजें उठीं-यहाँ-यहाँ। दीपक पहुँचा-पूछा, कहां ? उत्तर मिला-हर तरफ। दीपक ने कहा-पर अभी तो कहा जा रहा था ‘यहाँ’ ! पर यहाँ तो कहीं नहीं हैं। लोगों ने चारों ओर देखा, सारी स्थिति साफ-साफ दीख रही थी। अपनी बात सही न साबित होते देख सभी दीपक पर बिगड़ उठे-तुम हमें झूंठा साबित करने आये हो। हमारी चोटें देखो, हमारी हालत देखो, यह क्या बिना अन्धकार के सम्भव हैं ? दीपक शांत भाव से बोला-तुम्हें झूंठा सिद्ध करने का नहीं, अपना सत्य समझाने का विचार हैं, पर जो समझे उसी को तो समझाऊँ। तुमने अपनी चोटें देख लीं-उनमें मलहम लगाओ, मैं अन्य स्थान देखूँ।

दीपक हर आवाज पर गया, पर कहीं अन्धकार नहीं मिला। सब जगह वही क्रम दोहराया गया। लोगों ने देखा, अरे सचमुच अन्धकार तो दीपक के पहुँचते ही भाग जाता हैं। जहाँ दीपक होता हैं, वहाँ साफ-साफ दिखाई पड़ने लगता हैं। दीपक के चारों ओर भीड़ लग गयी। सब प्रसन्नचित्त अपना-अपना काम करने लगे।

एक ने पूछा-अन्धकार किसने भगाया ? उत्तर मिला-इस ज्योति ने। एक बोला-तो ज्योति हमें दे दो, अपने घर ले जायेंगे। दूसरा बोला-नहीं मुझे दो और मुझे-मुझे का शोर मच गया। दीपक ने कहा-ज्योति सभी के साथ जा सकती हैं, पर उसकी अपनी शर्त हैं, कीमत हैं। लोग हर्ष से पुकार उठे-हम कीमत देंगे, शर्त पूरी करेंगे, ज्योति लेंगे।

तो सुनो, ज्योति वर्तिका पर ठहरती हैं, पर उसे स्नेहसिक्त होना चाहिये और हाँ उसे धारण करने के लिये ऐसा पात्र जो सीधा रह सके और स्नेह को स्वयं ही न पी जाये। यह सब कर सको, तो फिर करो ज्योति पाने की तैयारी। कुछ ने सार्थक प्रयास किया, दीपक ने उन्हें स्पर्श किया, वे प्रकाशित हुऐ और चल पड़े। शेष शिकायत करते रहे।

आज भी हर व्यक्ति के लिये कुछ ऐसा ही अवसर हैं। युगज्योति हममें से हर एक का आह्वान कर रही हैं। पर हम हैं कि लाभ उठाने की कोशिश कम, शिकायतें अधिक कर रहे हैं। अच्छा हो, इसके लिये जीवन में साधन जुटायेँ युगज्योति के संपर्क में आने की साधना करें। फिर तो युगज्याति का स्पर्श पाते ही, जीवन में अन्धकार खोजने पर भी नहीं मिलेगा।

अखण्ड ज्योति नवम्बर १९९९

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