ध्यान रहे, धनुष के तीरों की भाँति मन से विचार निकलते हैं। वे लक्ष्य भेद करने के बाद फिर से उसी व्यक्ति के पास वापस लौट आते हैं, जिसने उन विचारों को उत्पन्न किया हैं। इसलिए यदि हम शुभ, सकारात्मक एवं रचनात्मक विचार प्रेषित कर रहे हैं तो ये वैचारिक जगत में चलते हुए उन लोगो तक पहुँचते हैं, जिनकी ओर लक्षित किये गये थे। रचनात्मक विचारों के तीर पुन: हमारे पास लोगों के आशीर्वाद, सद्भावना और शुभकामना लेकर लौट आते हैं और हमारा मन अधिक-से-अधिक प्रेरित, प्रसन्न और उत्साहित हो जाता है। इसके विपरीत जब विध्वंसात्मक विचार अपने लक्ष्य की ओर जाते हैं तो फल भिन्न होता हैं। यदि लक्ष्य अधिक सशक्त हैं तो हमारे ऋणात्मक विचार उसका भेदन नहीं कर पाते और वे विचारो के बाण लक्ष्य से टकराकर दोगने वेग से हमारे अपने उपर ही वार करते हैं। यदि इन्होने अपने लक्ष्य पर आघात कर भी दिया तो भी इनकी प्रतिक्रिया में विध्वंसक विचारो का दोगना वेग हम पर प्रहार करता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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