रविवार, 14 सितंबर 2008

क्या करें क्या न करें ?


त्यागने योग्य 
  • चोरी, बेईमानी, छल, मुनाफाखोरी, हराम की कमाई, मुफ्तखोरी आदि। अनीति से दूर रहना, अनीति से उपार्जित धन का उपयोग न करना। 
  • मांसाहार तथा मारे हुए पशुओं के चमडे का प्रयोग बन्द करना। 
  • पशुबलि अथवा दूसरों को कष्ट पहुंचाकर अपना भला करने की प्रवृति छोडना। 
  • विवाहों में वर पक्ष द्वारा दहेज लेने तथा कन्या पक्ष द्वारा जेवर चढाने का आग्रह न करना। 
  • विवाहों की धूम-धाम में धन की और समय की बर्बादी न करना। 
  • नशे (तम्बाकू, शराब, भॉग, गॉजा, अफीम आदि) का त्याग। 
  • गाली-गलौज एवं कटु भाषण का त्याग। 
  • जेवर और फैशनपरस्ती का त्याग। 
  • अन्न की बर्बादी, जूठन छोडने की आदत का त्याग। 
  • जाति-पॉति के आधार पर ऊंच-नीच, छूत-छात न मानना। 
  • पर्दाप्रथा का त्याग-किसी को पर्दा करने के लिए बाध्य न करना। स्वयं पर्दा न करना। 
  • महिलाओं एवं लड़कियों के साथ पुरुषों और लड़को की तुलना में भेद-भाव या पक्षपात न करना। 
अपनाने योग्य सत्प्रवृतियॉ।
  • कम से कम दस मिनट नित्य नियमित गायत्री उपासना। 
  • घर में अपने से बडो का नियमित अभिवादन करना। 
  • छोटों के सम्मान का ध्यान रखना, उनसे तू करके न बोलना। 
  • अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक रहना तथा उनका पालन करना। 
  • परिश्रम का अभ्यास बनाये रहना, किसी काम को छोटा न समझना। 
  • नियमित स्वाध्याय-जीवन को सही दिशा देने वाला सत्साहित्य कम से कम आधा घण्टे नित्य स्वयं पढना या सुनना। 
  • भारतीय संस्कृति की प्रतीक शिखा एवं यज्ञोपवीत का महत्त्व समझना, उन्हें निष्ठापूर्वक धारण करना-दूसरों को प्रेरणा देना। 
  • सादगी का जीवन जीना, औसत भारतीय स्तर के रहन-सहन के अनुरुप विचार एवं अभ्यास बनाना। उसमें गौरव अनुभव करना।
  •  ज्ञान-यज्ञ-सद्विचार प्रसार के लिये कम से कम 50 पैसा धन और एक घण्टा समय प्रतिदिन बचाकर सही ढंग से खर्च करना।
  •  परिवार में सामुहिक उपासना, आरती, आदि का क्रम चलाना। 
  • प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन सामूहिकरुप से यज्ञीय वातावरण में मनाना तथा जीवन की सार्थकता के लिए व्रतशील जीवनक्रम बनाना। 
  • समाज के प्रति, अपने उत्तरदायित्वों के प्रति जागरुकता, समाज में सत्प्रवृतियॉं बढाने के लिए किये जाने वाले सामूहिक प्रयासों में उत्साह भरा योगदान देना। 

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