मृत्यु एक मंगलमय महोत्सव :- सुखपूर्वक एवं शोकरहित मृत्यु वरण करने के लिए एक महामन्त्र है, येनानृत्तनि नोक्तानि प्रीति भेद: कृतो न च। आस्तिक: श्रद्धानश्च स सुखंमृत्युमृच्छति। अर्थात जिसने कभी असत्य आचरण नहीं किया हो, जिसके अन्दर ईर्ष्या-द्वेष का भाव न हो, जो आत्मा में परम विश्वासी हो तथा जो अच्छाइयों पर अनन्य श्रद्धा-आस्था रखता हो, वही सुखपूर्वक-शांतिपूर्वक महामृत्यु को वरण कर सकता हैं। अत: हम भी सद्चिन्तन, सदाचरण और सद्व्यवहार को जीवन में उतारकर मृत्यु को मांगलिक महोत्सव के रुप में मना सकते है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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