एक बार ज्ञानेश्वर महाराज सुबह-सुबह नदी तट पर टहलने निकले। उनहोनें देखा कि एक लड़का नदी में गोते खा रहा है। नजदीक ही, एक सन्यासी ऑखें मूँदे बैठा था। ज्ञानेश्वर महाराज तुरंत नदी में कूदे, डूबते लड़के को बाहर निकाला और फिर सन्यासी को पुकारा। संन्यासी ने आँखें खोलीं तो ज्ञानेश्वर जी बोले- क्या आपका ध्यान लगता है ? संन्यासी ने उत्तर दिया- ध्यान तो नही लगता, मन इधर-उधर भागता है। ज्ञानेश्वर जी ने फिर पूछा लड़का डूब रहा था, क्या आपको दिखाई नही दिया ? उत्तर मिला- देखा तो था लेकिन मैं ध्यान कर रहा था। ज्ञानेश्वर समझाया- आप ध्यान में कैसे सफल हो सकते है ? प्रभु ने आपको किसी का सेवा करने का मौका दिया था, और यही आपका कर्तव्य भी था। यदि आप पालन करते तो ध्यान में भी मन लगता। प्रभु की सृष्टि, प्रभु का बगीचा बिगड़ रहा है1 बगीचे का आनन्द लेना है, तो बगीचे का संवारना सीखे।
यदि आपका पड़ोसी भूखा सो रहा है और आप पूजा पाठ करने में मस्त है, तो यह मत सोचिये कि आपके द्वारा शुभ कार्य हो रहा है क्योकि भूखा व्यक्ति उसी की छवि है, जिसे पूजा-पाठ करके आप प्रसन्न करना या रिझाना चाहते है। क्या वह सर्व व्यापक नही है ? ईश्वर द्वारा सृजित किसी भी जीव व संरचना की उपेक्षा करके प्रभु भजन करने से प्रभु कभी प्रसन्न नही होगें।