कालिदास एक गया-बीता व्यक्ति था, बुद्धि की दृष्टि से शून्य एवं काला-कुरुप। जिस डाल पर बैठा था, वह उसी को काट रहा था। जंगल में उसे इस प्रकार बैठे देख राज्यसभा से विद्योत्तमा द्वारा अपमानित पंडितों ने उस विदुषी को शास्त्रार्थ में हराने व उसी से विवाह कराने का षडयंत्र रचने के लिए कालिदास को श्रेष्ठ पात्र माना। शास्त्रार्थ में अपनी कुटिलता से उसे मौन विद्वान बताकर उन्होंने प्रत्येक प्रश्न का समाधान इस तरह किया कि विद्योत्तमा ने उस महामूर्ख से हार मान उसे अपना पति स्वीकार कर लिया। पहले ही दिन जब उसे वास्तविकता का पता चला तो उसने उसे घर से निकाल दिया। धक्का देते समय जो वाक्य उसने उसकी भर्त्सना करते हुए कहे, वे उसे चुभ गये। दृढ़ संकल्प अर्जित कर वह अपनी ज्ञान वृद्धि में लग गया। अंत में वही महामूर्ख अपने अध्ययन से कालांतर में ``महाकवि कालिदास´´ के रुप में प्रकट हुआ और अपनी विद्वता की साधना पूरी कर विद्योत्तमा से उसका पुनर्मिलन हुआ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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