महाभारत युद्ध में प्रधान सेनापति कर्ण था। उसे हराना असम्भव ठहराया गया था। चतुरता से उसके बल का अपहरण किया गया। कर्ण का सारथी शल्य था। श्री कृष्ण के साथ तालमेल बिठाकर उसने एक योजना स्वीकार कर ली। जब कर्ण जीतने को होता तब शल्य चुपके से दो बाते कह देता, यह कि-तुम सूत पुत्र हो। द्रोणाचार्य ने विजयदायिनी विद्या राजकुमारो को सिखाई है। तुम राजकुमार कहाँ हो जो विजय प्राप्त कर सको। जीत के समय भी शल्य हार की आशंका बताता । इस प्रकार उसका मनोबल तोडता रहता। मनोबल टूटने पर वह जीती बाजी हार जाता। अन्तत: विजय के सारे सुयोग उस के हाथ से निकलते गये और पराजय का मुहँ देखने का परिणाम भी सामने आ खडा हुआ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें