राजा जनश्रुति को चिडिया की भाषा समझने की सामर्थ्य प्राप्त थी। हंसों की जोड़ी बात कर रही थी की जनश्रुति से तो बड़े मुनि रैक्य हैं, जो सदा परमार्थ में लगे रहते है। गाडीवान रैक्य के बड़ा होने की बात से उन्हें बड़ा कष्ट हुआ। दूसरे दिन उन्होंने उस गाडीवान की खोज कराई और बहुत-सा धन, अश्व और आभूषण लेकर मुनि रैक्य के पास गए और बोले- "आपकी कीर्ति सुनकर यहाँ आए हैं, हमें ब्रह्म विद्या का उपदेश दीजिये। "रैक्य मुनि ने उत्तर दिया- "राजन ! ब्रह्म-विद्या सीखनी है, तो अपना अन्तरंग पवित्र बनाओ। अंहकार को मिटाकर, श्रद्धा-विश्वास तथा नम्रता को धारण कर ही तुम सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त कर सकोगे।" जनश्रुति को अपनी भूल ज्ञात हुई और वे सिद्धि-संपादन का अहम् त्यागकर अन्दर से स्वयं को महान बनने में लग गए।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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