मेवाड़ की रक्षा के लिये महाराणा प्रताप अंतिम प्रयत्न करते हुए निराश हो गए। महाराणा प्रताप ने दो-चार हजार सैनिकों को लेकर बड़ी बादशाही सेनाओं का मुंह मोड़ दिया। मुगल सल्तनत के साधन बहुत अधिक थें। अंत में ऐसा समय आया, जब प्रताप को अपने साथियों के लिए सूखी रोटी मिलना भी असंभव हो गया। अत: उन्होंने मेवाड़ छोड़कर सिंध की तरफ जाने का निश्चय किया। प्रताप देश त्याग कर अरावली पर्वत को पार कर जाने लगे, तो किसी ने पीछे से पुकारा- ओ मेवाड़पति ! राजपूती वीरता की शान दिखाने वाले ! हिन्दू धर्म के रक्षक ! ठहर जाओ। आगंतुक राज्य के पुराने मंत्री भामाशाह आँखों में आंसू लिए बोले- स्वामी, आप कहाँ जा रहे हैं ? एक बार आप फिर अपने घोड़े की बाग मेंवाड़ की तरफ मोड़िये और नए सिरे से तैयारी करके मातृभूमि का उद्धार करिए। आपके पूर्वजों की दी हुई पर्याप्त संपत्ति में आपके चरणों में भेंट करता हूँ. भामाशाह के भंडार में इतना धन था कि पच्चीस हजार की सेना का बारह वर्ष तक खर्चा चल सकता था। भामाशाह ने अपना सुख ठुकरा दिया और सारे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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