सभ्य समाज की रचना इस आदर्शवाद को हृदयगंम करने से ही संभव हो सकती है जिसे हमारे पूर्व पुरुषों ने बड़ी श्रद्धा भावना के साथ अपने जीवन का लक्ष्य बनाये रखा था । हो सकता है कि महानता के मार्ग पर चलते हुए किसी को कष्ट और कठिनाईयों की अग्निपरीक्षा में होकर गुजरना पड़े पर उसे आत्मिक-शान्ति और कर्तव्यपालन की प्रसन्न्ता हर घड़ी बनी रहती है । इस मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति को असुविधा हो सकती है पर समाज का विकास इसी त्याग और बलिदान के ऊपर निर्भर रहता है । चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी समाज की सुख-सम्पत्ति होते हैं । हम अतीत काल में विश्व के सुदृढ़ आदर्शवाद के आधार पर ही रहे हैं । अतः जबकि हम अपनी उस पुरानी महानता और उज्ज्वल परम्परा को पुनः लौटाने चले हैं तो इस आदर्शवाद का ही अवलम्बन करना होगा । धैर्य और कर्तव्य को दृढ़तापूर्वक जीवन में धारण करना पड़ेगा ।
-वाङ्मय ६६-२-६८
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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