बुराइयों की होली जलाई जा सकती है । जिस प्रकार रामलीला का कागजी रावण मरता है, सूर्पणखा की हर साल नाक कटती है, होली के अवसर पर होलिका राक्षसी की चिता जलाई जाती है, उसी प्रकार अश्लीलता, नशेबाजी, बेईमानी एवं कुरीतियों की होली जलाई जा सकती है और उनके विरूद्ध जन-मानस में घृणा उत्पन्न की जा सकती है । हमें यह पूरा-पूरा ध्यान रखना होगा कि कोई अशान्ति, उत्तेजना या उपद्रव जैसी बात न होने पावे । किसी को चिढ़ाया न जाए, यदि विरोध में कोई कुछ अनुचित व्यवहार भी करे तो पूर्ण शान्त रहा जाए और मुस्कान एवं विनम्रता से उसका उत्तर दिया जाए ।
इस प्रकार के अगणित प्रचारात्मक, सुधारात्मक, आन्दोलनात्मक, विरोधारात्मक, प्रदर्शनात्मक, रचनात्मक एवं सेवात्मक कार्यक्रम हो सकते हैं । स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न योजनाएँ बन सकती है । बड़ों के पैर छूने की, कष्ट पीड़ितों की सेवा करने की और पाठशालाएँ चलाकर विचारात्मक शिक्षा देने की योजना बन सकती है ।
युग-निर्माण की दिशा में उक्त कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से भली-भाँति चल रहा है, उसे अब और भी सुव्यवस्थित रूप दिया जाना चाहिए । किन्तु आत्मिक उत्कृष्टता और भौतिक श्रेष्ठता के दोनों लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अब तक के चलते आ रहे अभियान को जितना अधिक हो सके सुव्यवस्थित रूप दिया जाए और इसे सुसंयत रूप से अग्रगामी बनाया जाए । अखण्ड ज्योति जिस मिशन को लेकर अवतीर्ण हुई थी उसे उसने अब तक बहुत शानदार ढंग से निकाला है । अब आगे भी उसे जी जान से जुटे रहना है, लक्ष्य की पूर्ति के लिए हम-सब को अब उसी ओर द्रुतगति से अग्रसर होना है ।
-वाङ्मय ६६-२-५३
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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