शुक्रवार, 4 मार्च 2011

हमारा आत्मवादी जीवन दर्शन

आत्मसम्मान के नाम पर कई बार ओछे स्तर का अहंकार विदूषक जैसा वेष बनाकर सामने आ खड़ा होता है । हमें अहंकार और आत्मसम्मान का अन्तर समझना चाहिए । अहंकार वस्तुओं और परिस्थितियों को खोजता है और उनके आधार पर रुष्ट, तुष्ट होता है, जबकि आत्म-गौरव आन्तरिक स्तर पर-गुण, कर्म, स्वभाव के स्वरूप पर आकांक्षाओं और विचारणाओं की दिशा पर आधारित रहता है । जिसकी अन्तःभूमि उज्ज्वल है उसे बाह्य परिस्थितियों से कुछ लेना-देना नहीं रह जाता । उसे भौतिक जीवन की सफलता, असफलताएँ प्रभावित नहीं करती । सम्पदाएँ नहीं आन्तरिक विभूतियाँ उसकी सन्तुष्टि का केन्द्र रहती है । अहंकारी व्यक्ति जहाँ बाह्य प्रतिकूलताएँ देखकर ही असन्तुलित और रुष्ट-असन्तुष्ट होने लगता है वहाँ आत्मवादी को आन्तरिक स्तर की उत्कृष्टता ही परिपूर्ण सन्तोष दे सकने के लिए पर्याप्त प्रतीत होती है । 
-वाङ्मय ६६-१-२२

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