हमारे इतिहास में अनेक प्रसंग आते है , जिनमें पथभ्रमित पति को सती, साध्वी, विवेकशील पत्नी ने सत्पथ पर आरूढ़ किया। महाराष्ट्र पर से समर्थ रामदास, वीरश्रेष्ठ छत्रपति शिवाजी और माता जीजाबाई की छत्रछाया उठ चुकी थी। शिवाजी के उत्तराधिकारी संभाजी विलासिता के कारण पन्हाला के दुर्ग में कैद थे। संभाजी को एक लंपट व्यक्ति से ऊपर उठाकर यशस्वी बनाने में येंसुबाई का हाथ था ।उन्होने अपने पति को सँभाला । उँच-नीच समझाई, पिता के आदर्श स्मरण कराए। एक प्रकार से संभाजी का येसुबाई ने कायाकल्प कर दिया । वे संभाजी के साथ छाया की तरह लगी रहती थी। उन्हाने अपने पति को इस सीमा तक मजबूत बना दिया कि वे जब अँगरेज द्वारा पकड़े गए ,प्रताड़ित किए गए, तब भी उन्होने धर्म परिवर्तन स्वीकार नही किया। अंतत: संभाजी का वध कर दिया गया । येसुबाई ने अपने देवर राजाराम को मराठों का नेता बना दिया। यहाँ तक कि औरंगजेब ने उन्हे पकड़ कर सोलह वर्ष तक दिल्ली में बंद रखा, पर वे वहाँ से भी संदेश भेजती रहीं कि और राजाराम को छत्रपति बना दिया । 1719 में येसुबाई मुक्त हुई। सत्तर वर्ष की आयु में अपने ही राज्य में जो अभी भी स्वतंत्र था, उन्होंने अंतिम साँस ली।