सुकरात पर नवयुवकों को गलत शिक्षा देकर भ्रमित करने का मुकदमा चला । उन्होने न्यायालय में ही सबको खरी-खोटी सुनाई । एथेंस के कुछ संभ्रांत नागरिक, जो सुकरात की सहायता से परिचित थे। उनके पास आए और बोले- ``आपके विषय में बात कर ली है। आप युवको को उपदेश देना बंद कर दे तो मृत्यु दंड टल जायेगा। ´´ सुकरात ने उत्तर दिया-``इस बात को मान लेना मेरी दृष्टि से भगवान का अपमान है। अगर मे शील-सदाचार के विषय में चर्चा नहीं कर सकता और आत्मान्वेषण बंद कर देता हूँ तो मेरा जीवन जीना निरर्थक है। उससे विष का प्याला पी लेना ज्यादा श्रेयस्कर है। ´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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