नागारानी गिडालू के बारे में आम भारतवासी अधिक जानता नही है। नागारानी नागा पहाडियों की पवित्र संतान कोबाई कबीले के एक पुरोहित के घर जन्मी थी। सोलह साल की गिडालू पर भारत भर में चल रहे असहयोग आंदोलन का बड़ा प्रभाव पड़ा, जब उसकी प्राचार्या ने राष्ट्रधर्म के बारे मे बताया। उसने दस-पंद्रह सहयोगिनी बहनों का एक संघठन बनाया । धीरे-धीरे यह संगठन बड़ा होता गया। अनेक कबीले अँगरेज सत्ता के विरोध में उठ खडे हुए और उन्होने विदेशी वस्तुओं की होली जलाई । पुलिस ने अपना दमनचक्र चलाया । अतत: उन्हें गिरफ्तार कर आजन्म कारावास की सजा मिली। आजादी के भी दो वर्ष बाद 19 जुलाई, 1949 को वे 18 वर्ष की सजा काटकर निकली। तब वे 37 वर्ष की प्रोढा हो चुकी थीं, पर उनके जेल में रहते हुए क्रांति की जो चिनगारी फूटी, उसने पूरे नेफा क्षेत्र में एक अलख जगा दी। अपनी सारी जवानी आजादी के लिए कुरबान कर देने वालों को सारा राष्ट्र नमन करता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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