रूस के छोटे से कसबे में 1831 में एक बच्ची जन्मी। हेलेना नामक इस संवेदनशील बालिका को समाज में स्त्रियों की दुर्दशा देखकर रोना आ जाता था। उन्हें एक प्रौढ से जबरदस्ती विवाह के बंधनों मे बाँध दिया गया, पर उस वातावरण से निकल वे विश्वयात्रा पर निकल पड़ीं । अपना नाम रखा मैडम ब्लावट्स्की। उन्होनें न केवल काफी भ्रमण किया, स्वाध्याय भी किया । नियति उन्हें भारत ले आई। यहाँ के योगी-सिद्ध-संतो से वे मिली । अज्ञात की खोज को उन्होनें अपना प्रिय विषय बना लिया, ताकि सभी अपना आत्मविकास कर सकें । इसके लिए उनने `सीक्रेट डॉक्ट्रीन´ नामक ग्रंथ लिखा । वे लोक से परे पारलौकिक शक्तियों का अस्तित्व मानती थी। बाद में जब वे 1873 में अमेरिका में बस गई तो उनने अपने कार्य को विधिवत् संस्थागत रूप दिया। `थियोसोफिकल सोसाइटी´ की उन्होने स्थापना की। बाद में मद्रास में अडयार नदी के तट पर समुद्र किनारे उन्होंने इसके अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय की स्थापना की । वे सच्चे अर्थों में विश्व नागरिक थी, विश्वबंधुत्व की साकार प्रतिमा थीं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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