लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में स्थित `साक्षरता निकेतन´ एवं इसके द्वारा की जा रही सेवाओं को काफी लोग जानते है , पर उनकी जन्मदात्री श्रीमती वेल्दीफिशर के बारे में संभवत: बहुत लोग अधिक नहीं जानते। 18 सितंबर, 1879 को न्यूयॉर्क राज्य के रोम नामक कसबे में वेल्दीफिशर ने सबसे पहले गाँव-गाँव जाकर पाठशालाएँ चलाई। एक मिशनरी के रूप में वे चीन गई । वहाँ चीनी समाज की महिलाओं की स्थिति देखकर वे बहुत दुखी हुई । उनके लिए भी साक्षरता विस्तार, कुरीति-उन्मूलन जैसे कार्य किए। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वे अमेरिका लौटी तो उनका परिचय वान फेडरिक फिशर से हुआ, जिनके विचार उनसे मिलते-जुलते थे। यद्यपि दोनो चालीस से ऊपर थे, पर वे विवाह-सूत्रों में बँधकर एक ओर एक मिलकर ग्यारह बनने की उक्ति सिद्ध करना चाहते थे। दम्पति भारत आए। उन्होने सर्व-धर्म-समभाव का एक आर्दश यहाँ देखा। पति की मृत्यु के बाद वे अमेरिका लौटीं पर 1947 में पुन: भारत आई । गांधी जी के विचारों से प्रभावित श्रीमती फिशर स्थायी रूप से यहीं बस गई । पहले इलाहबाद (नैनी) और बाद में लखनऊ को उन्होंने कार्यक्षेत्र बनाया । लक्ष्य था-साक्षरता का गाँव-गाँव में विस्तार । 13-9-1956 को साक्षरता निकेतन की स्थापना हुई। वस्तुत: आदर्शों पर जीने वाले देश, धर्म की परिधि से बाहर जीते हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें