रविवार, 20 सितंबर 2009

सदगुरू का मार्गदर्शन।

प्रतिष्ठा पा लेना सरल है, पचा पाना कठिन है। बुद्ध के एक शिष्य प्रव्रज्या से लौटे। उसके प्रवचन से प्रभावित जनमानस की प्रशंसा सुनने के बाद उसके पाँव जमीन पर नहीं थे। वरिष्ठ व्यवस्थापक अनाथपिंडक ने उनके हाथ में अगले दिन कुल्हाडी थमा दी जंगल से ईधन काटने के लिए। सभी के लिए नियम था कि नित्य श्रम करना है। कुल्हाड़ी एक ओर फेंक दी और मुँह लटका लिया। अनाथपिंडक ने उन्हें बुद्ध के पास श्रावस्ती भेज दिया। बुद्ध स्वयं भिक्षाटन करने गए थे। देखा, तथागत भिक्षा घर-घर से लेकर आ रहे हैं एवं रास्ते में उपले भी बटोर रहे हैं, ताकि आश्रम में काम आ सकें। उनके मन को पढ बुद्ध बोल उठे- ``अर्हत बना है तो पहले अहंता गलाओ। श्रम से गरिमा नहीं घटेगी। यह न होने पर पाखंड बढे़गा । शिष्य ने यथार्थता समझी और कदमों में झुक गए । हर शिष्य के लिए यही हर सदगुरू का मार्गदर्शन है। 

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