शिरडी के साईंबाबा से जुड़ा एक बड़ा विलक्षण प्रसंग है। प्रयाग में कुंभ का योग आया। शिरडी के लोगों ने सोचा कि इस वर्ष प्रयाग चलकर त्रिवेणी में स्नान किया जाए। नीम के पेड़ के नीचे `द्वारकामाई´ नामक स्थान पर विराजमान साईंबाबा के पास सभी भक्तजन आएं एवं जाने की अनुमति माँगी। साईबाबा ने कहा-``बेकार उतनी दूर जाने से क्या फायदा-`मन चंगा तो कठौती में गंगा´ तुमने सुना होगा। अपना प्रयाग तो यही है। बस, मन में विश्वास कर लों तो त्रिवेणी स्नान का पुण्यफल यहीं प्राप्त हो जायेगा।´´ कथन का प्रभाव पड़ना आरंभ हुआ ही था , सभी ने सिर झुकाया, तभी देखा कि बाबा के दोनों पैरो के अँगूठों से गंगा-यमुना की धाराएँ प्रवाहित हो रही है। सभी इसमे स्नान कर स्वयं को धन्य मानने लगे। लगा कि भक्तों पर न केवल असीम कृपा हुई है, वरन् एक तथ्य भी बताया गया है कि संतो, सद्गुरू अवतारी महापुरूष के चरणों में ही प्रयागस्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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