आयुर्वेद में रोग के निदान के लिए `माधव निदान´ श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया है। इस ग्रंथ में वात, पित्त, कफ किन कारणों से बढ़ते हैं, इस पर तीन श्लोक लिखे है । `क्रोधात्´ शब्द लिखकर स्पष्ट बतलाया है कि क्रोध से पित्त बढता है। आज का मनुष्य बात-बात पर गुस्सा हो जाता है, तनावग्रस्त हो अंदर ही अंदर रूठी स्थिति में घुटता रहता है। उससे पित्त की वृद्धि होती है। अधिकांश बिना निदान (डायग्नोसिस) किए हुए पेट के दरदों में इस पित्त का बढना एवं क्रोध ही मूल कारण होता है, जबकि चिकित्सक दवा पर दवा लिखते जाते है । पित्तशमन की औषधियां भी काम नहीं करेंगी। मात्र क्रोध पर नियंत्रण एवं प्रसन्न मन:स्थिति ही किसी तकलीफ को दूर कर सकती है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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