मनुष्य की शक्तियाँ अनंत है, परंतु यह अचरज भरे दु:ख की बात है कि ज्यादातर शक्तियाँ सोई हुई है। यहाँ तक कि हमारे जीवन के सोने कीं अतिम रात्रि आ जाती है, परंतु इन शक्तियों का जागरण नही हों पाता। यदि कही कुछ होता भी है तो बहुत थोडा। ज्यादातर लोग तो अपनी अनंत शक्तियों एवं असीमित संभावनाओं के बारे में सोचते भी नही। मानव जीवन का यथार्थ यही है कि हममे से ज्यादातर लोग तो आधा चौथाई ही जी पाते है। कोई-कोई तों अपने जीवन का केवल सौवाँ, हजारवाँ, या फिर लाखवाँ ही जी पाते है। इस तरह हमारी बहुतेरी शारीरिक, मानसिक शक्तियों का उपयोग आधा-अधुरा ही हो पाता है , आध्यात्मिक शक्तियों का तो उपयोग होता ही नहीं। जीवन का सच यही है कि मनुष्य की अग्नि बुझी-बुझी सी लगती है और इसीलिए वह स्वयं की आत्मा के समक्ष भी हीनता में जीता है।
इससे उबरने के लिए जरूरी है कि हमारा जीवन सक्रिय और सृजनात्मक हो। अपने ही हाथो दीन-हीन बने रहने से बड़ा पाप और कुछ भी नहीं। जमीन को खोदने से जलस्रोत मिलते है, ऐसे ही जीवन को खोदने से अनंत-अनंत शक्तिस्रोत्र उपलब्ध होते है। इसलिए जिन्हे अपने आप की पूर्णता अनुभव करना है, वे सदा-सर्वदा सकारात्मक रूप से सक्रिय रहते है: जबकि दूसरे केवल सोच-विचार, तर्क-वितर्क में ही उलझे-फँसे रहते हैं। सकारात्मक सक्रियता के साधक हमेशा ही विचारो को क्रियारूप में परिणत करते रहते है।
इस विधि में एक-एक कुदाली चलाकर वे स्वयं में अनंत-अनंत शक्तियों का कुआँ खोद लेते हैं , जबकि तर्क-वितर्क और बहुत सारा सोच-विचार करने वाले बैठे ही रहते हैं। सकारात्मक सक्रियता और सृजनात्मकता ही अपनी अनंत शक्तियों की अनुभूति का सूत्र है। इसे अपनाकर ही व्यक्ति अधिक से अधिक जीवित रहता है और उसकी अपनी पूर्ण संभावित शक्तियों को सक्रिय कर लेता है। अपनी आत्मशक्ति की अनंतता को अनुभव कर पाता है। इसलिए जीवन संदेश के स्वर यही कहते है कि विचार पर ही मत रूके रहो। चलो और करो। लाखों-लाख मील चलने के विचार से एक कदम आगे बढ चलना ज्यादा मूल्यवान है।
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