हरो विश्व विपदा श्री राम, हे अन्तर्यामी सुखधाम ।
जब-जब विपत्ति धरा पर आई, दुख दर्दों की बदली छाई ।
तब-तब शपथ तुम्हीं ने खाई, और आसुरी वृत्ति जलाई ।
पुनः सम्भालो बिगड़े काम, अजर-अमर हे नाथ अकाम॥
हरो विश्व....................॥
तुमने ही हर युग में आकर, दमकाया कर्तव्य दिवाकर ।
अर्जुन को संदेश सुनाकर, रची विश्व हित गीता सुखकर॥
करते विनय सुबह और शाम, रचो परिस्थितियाँ अभिराम॥
हरो विश्व...................॥
असुर वृत्तियाँ दूर भगा दो, साहस और विवेक जगा दो ।
नवल सृजन में चित्त लगा दो, सद्गुण की गंगा उमगा दो॥
भरो प्रेरणा आठों याम हो समृद्घ नगरी और ग्राम॥
हरो विश्व...................॥
- बाबूलाल जलज
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