ऐ धरती के रहने वालो, धरती को स्वर्ग बनाना है॥
है स्वर्ग कहीं यदि ऊपर तो, उसको इस भू पर लाना है॥
है स्वर्ग लोक इस धरती पर, ऊपर अथवा अन्यत्र नहीं ।
तुम उसको यहीं तलाश करो, जाओ न ढुंढने और कहीं ॥
अपने पुरूषार्थ प्रयत्नों से , कर दो उसका निर्माण यहीं ।
यह आशा का संदेश तुम्हें, भू मण्डल पर फैलाना है॥
पिता-पुत्र, पति-पत्नी भाई, भाई में हो प्यार जहाँ ।
देवरानी और जेठानी में, हो प्रेम पूर्ण व्यवहार जहाँ॥
हो सास-बहू भाभी व ननद में, नहीं कभी तकरार जहाँ ।
ऐसे परिवार बना करके, घर-घर में स्वर्ग बुलाना है॥
चिंताएँ तजकर लाभ हानि, सब में प्रसन्न रहना सीखो ।
दुख व्यथा विघ्न बाधा संकट, सबको हँस-हँस सहना सीखो॥
ईष्र्या व द्वेष को छोड़, प्रेम की धारा में बहना सीखो ।
रोने-धोने को छोड़ मधुर, संगीत सदा ही गाना है॥
सम्बंधी मित्र पड़ोसी से, निष्कपट मधुर व्यवहार करो ।
उनके सुख में तुम सुखी बनो, सेवा कर उनके दुःख हरो॥
निर्बल सज्जन से डरो सदा, बलवान दुष्ट से भी न डरो ।
सच्चे अर्थों में बन मनुष्य, जीवन आर्दश बिताना है॥
जिस ग्राम नगर में वास करो, उसको आर्दश बनाओ तुम ।
दुर्गन्ध गंदगी दूर हटा, विद्या घर-घर फैलाओ तुम॥
अज्ञान हटाकर इस जग का, फिर से आलोक जगाना है॥
ऐ धरती के रहने वालो, धरती को स्वर्ग बनाना है॥
-मंगल विजय
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