देवियाँ देश की जाग जायें अगर ।
युग स्वयं ही बदलता चला जायेगा ।
शक्तियाँ जागरण गीत गाएँ अगर ।
हर हृदय ही मचलता चला जायेगा ।
वीर संतान से कोख खाली नहीं ।
गोद में कौन-सी शक्ति पाली नहीं॥
जननियाँ शक्ति को साध पायें अगर ।
शौर्य शिशुओं में बढ़ता चला जायेगा ।
मूर्ति पुरुषार्थ में है सदाचार की ।
पूर्ति श्रम से सहज साध्य अधिकार की । ।
पत्नियां सादगी साध पायें अगर ।
पति स्वयं ही बदलता चला जायेगा॥
छोड़ दें नारियाँ यह गलत रूढ़ियाँ ।
तोड़ दें अंध विश्वास की बेड़ियाँ॥
नारियाँ दुष्प्रथायें मिटायें अगर ।
दम्भ का दम निकलता चला जायेगा॥
धर्म का वास्तविक रूप हो सामने ।
धर्म गिरते हुओं को लगे थामने॥
भक्तियाँ भावना को सजा लें अगर ।
ज्ञान का दीप जलता चला जायेगा॥
यह धरा स्वर्ग सी फिर सँवरने लगे ।
स्वर्ग की रूप सज्जा उभरने लगे॥
देवियाँ दिव्य चिंतन जगायें अगर ।
हर मनुज देव बनता चला जायेगा॥
माया वर्मा
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