रविवार, 25 जुलाई 2010

समय की संपदा नष्ट न करें


समय अपनी गति से चल रहा है, चल ही नहीं रहा-भाग रहा है। निरंतर गतिमान इस समय के साथ कदम मिलाकर चलने पर ही मानव जीवन की सार्थकता है। इसके साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। पिछड़ना सफलता से दूर हटना है, उसकी ओर गतिशील होना नहीं।


सुनते हैं कि मनुष्य की साँसें गिनी हुई हैं। एक श्वांस के साथ जीवन की इस अमूल्य निधि की एक इकाई कम हो गई। एक -एक इकाइयाँ कम होती जाएँ तो जीवन की पूँजी एक दिन चुक जाती है। उस समय मृत्यु दूत बनकर लेने आ जाते हैं, उसके साथ जाते-जाते व्यक्ति पीछे मुड़कर देखता है तो उसे ज्ञात हो जाता है कि उसने कितनी बेदर्दी से समय को गँवाया है या उसके एक -एक क्षण का सदुपयोग किया है।


संपदा का, विद्या का रोना सभी को रोते देखा है। कोई धन के अभाव में दुःखी है तो किसी के पास ज्ञान नहीं- विद्या नहीं,उसके लिए सिर पीट रहा है। समझ में नहीं आता कि यह हनुमान कब अपनी सामर्थ्य को समझेंगे तथा एक छलांग मारकर लंका पहुंच जाएँगे। विश्व की संपदा, विश्व का ज्ञान भंडार तो उनकी बाट जोह रहा है। समय जैसी मूल्यवान् संपदा का भंडार भरा होते हुए भी जो विनिमय कर धन ज्ञान तथा लोकहित को नहीं पा सकते उनसे अधिक अज्ञानी किसे कहा जाए ?

समय अमूल्य है, समय को जिसने बिना सोचे -समझे खर्च कर दिया वह जीवन पूँजी भी यों ही गँवा देता है। यह पूँजी अपने आप खर्च होती है, आप कृपण बनकर उसे सोने-चाँदी -सिक्के की तरह जोड़कर नहीं रख सकते। यह गतिवान् है, आप अपनी अन्य संपदाओं की तरह उस पर अधिकार जमा नहीं सकते। आपका उसपर स्वामित्व वहीं तक है कि आप उसका सदुपयोग कर लें।


जिस व्यक्ति में समय को खर्चने की, उसका सदुपयोग करने की सामर्थ्य नहीं होती तो समय उसे खर्च कर देता है। दिन -रात के चौबीस घंटे कम नहीं होते। इस समय को हम किस प्रकार व्यतीत करते हैं, इसका लेखा -जोखा करते चले तो हमें ज्ञात हो जाता है कि हम जी रहे हैं या समय को व्यर्थ गँवाकर एक प्रकार की आत्महत्या कर रहे हैं।

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