रविवार, 25 जुलाई 2010

ईमानदारी

हमारे देश में ऎसे अनेक क्रांतिकारी हुए, जो धन के प्रति बहुत सचेत रहते थे। कभी उन्होंने अपव्यय नहीं किया। जब भी धन खर्च किया, या तो अपना जीवन बचाने के लिए या फिर अपने देश के लिए। अपने दल में पैसे का हिसाब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वयं सम्भालते थे, ताकि एक पैसे का भी अपव्यय न हो। साण्डर्स हत्याकाण्ड से कुछ ही दिन पहले दल के सदस्य लाहौर में थे। पैसे की कमी के कारण इन दिनों आजाद दल के प्रत्येक सदस्य को भोजन के लिए चार आने देते थे। भगत सिंह को भी चार आने दिए थे, किन्तु उन्होंने उस पैसे की पिक्चर देख डाली। पिक्चर देखकर आए, तो ईमानदारी से आजाद को बता भी दिया। आजाद ने उन्हें खूब डांटा। उनका कहना था कि इस प्रकार का दुर्व्यसन क्रांतिकारियों के लिए हानिकारक है। दल के किसी सदस्य को ऎसे कार्यो को करने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। तब भगत सिंह ने बताया कि यह पिक्चर अमेरिका के स्वाधीनता संग्राम के विषय में थी। इससे आजाद नरम पड़े, भगत सिंह को एक चवन्नी और दी और कहा कि वह पहले जाकर खाना खा लें। 

आजाद में किसी तरह का स्वार्थ नहीं था। वह भाई-भतीजावाद और अपने गुणगान के भी खिलाफ थे। भगत सिंह ने ही एक बार आजाद से कहा था, पण्डितजी आप हमें अपनी जन्मभूमि और रिश्तेदारों के बारे में बताएं, ताकि हम देशवासियों को बता सकें कि शहीद कहां पैदा हुए। 

यह सुनकर आजाद नाराज हो गए थे और पूछा था, "तुम्हारा सम्बन्ध मुझसे है या मेरे रिश्तेदारों से? मैं नहीं चाहता कि मेरी जीवनी लिखी जाए।"

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