दान में सेवा भाव हो, तो वह अहंकार को बढ़ाता ही है। एक बार हातिमताई अपने मित्रों के साथ जा रहे थे। अचानक उन्हें एक भिखारी दिखाई दिया। हातिमताई उसके पास गए और उसे कुछ दान दिया। थोड़ा आगे जाकर हातिमताई ने अपने मित्र से पूछा, ‘‘मैं बहुत ही दानी हूँ। मेरी दानशीलता से मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं बहुत ही महान हूँ। तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो ?’’
मित्र ने जवाब दिया, ‘‘हातिम, ऐसा ही एक बार मुझे भी लगा था। अपनी महानता को प्रदर्शित करने के लिए मैंने एक विशाल भोज का आयोजन किया। उसमें मैंने अपने नगर के सारे व्यक्तियों को आमंत्रित किया। मुझे लगता था कि जब सारा नगर ही मेरे द्वारा दिए गए भोज पर आएगा, तब स्वत: ही मेरी महानता सिद्ध हो जाएगी। भोज के समय मैं अपने महल की छत पर खड़ा था। वहां से मैंने देखा था कि एक व्यक्ति उस समय अपनी कुल्हाड़ी से पेड़ काट रहा था। मुझे लगा कि शायद मेरे यहां भोज है। यह बात उस व्यक्ति को मालूम नहीं है। इसलिए मैंने अपने नौकर को उस व्यक्ति के पास भेजा। कुछ समय बाद मेरा नौकर मेरे पास आया और उसने कहा कि वह व्यक्ति मेरे यहां के भोज में नहीं आ सकता।’’
यह बात मुझे अजीब-सी लगी। मैं खुद उसके पास गया और उसे भोज में आने के लिए कहा। उस व्यक्ति का जवाब था, ‘‘मैं तो अपनी मेहनत की रोटी खाता हूँ। दूसरों के दान, कृपा, भलाई का बोझ ढोना मुझे पसंद नहीं है। बस हातिम, उस दिन के बाद मैंने अपने को कभी महान नहीं कहा। हातिमताई ने यह सुनकर कहा, ‘‘मैं भी उस लकड़हारे को सचमुच समझता हूँ। दान देकर खुद को महान समझने की बजाय मेहनत की कमाई खाने वाला ही अधिक महान है।’’
1 टिप्पणी:
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ,मेहनत का फल बहुत ही मीठा होता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं ,लेकिन किसी के अच्छे,सच्चे,देशभक्ति व ईमानदारी भरे कार्य के लिए उसको सम्मानित करते हुए उसे कुछ दान देकर सम्मानित करना भी एक बहुत ही अच्छा कर्म जिसे हम सभी को अपने आस-पास के लोगों में से सच्चे और इमानदार को ढूंढकर सम्मानित करते हुए जरूर करना चाहिए ,ऐसा करने से लोग सच्चाई और ईमानदारी को सम्मान मिलता देख इसके लिए लिए प्रेरित होंगे |
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