हरिनारायण आप्टे बड़े उदार थे। उनकी भोजन बनाने वाली की पाँच-छह वर्ष की पुत्री का उनसे बड़ा स्नेह था। भोजन वे उसी के साथ करते थे। एक बार आप्टेजी के घर एक मेहमान आया। बच्ची को आप्टैजी के साथ भोजन करते देख उसने कहा-: प्रतीत होता है, यह आपकी प्रथम पुत्री की सुपुत्री है।´´आप्टेजी ने जवाब दिया-::पुत्री नही, यह मेरी भानजी है।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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