शनिवार, 19 दिसंबर 2009

पुत्री नही भानजी

हरिनारायण आप्टे बड़े उदार थे। उनकी भोजन बनाने वाली की पाँच-छह वर्ष की पुत्री का उनसे बड़ा स्नेह था। भोजन वे उसी के साथ करते थे। एक बार आप्टेजी के घर एक मेहमान आया। बच्ची को आप्टैजी के साथ भोजन करते देख उसने कहा-: प्रतीत होता है, यह आपकी प्रथम पुत्री की सुपुत्री है।´´आप्टेजी ने जवाब दिया-::पुत्री नही, यह मेरी भानजी है।´´

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