शनिवार, 19 दिसंबर 2009

अपना मुँह गंदा क्यो करूँ

पं. मदनमोहन मालवीय बम्बई में ठहरे हुए थे। रात्रि के समय बम्बई के प्रसिद्ध विद्वान पं. रमापति मिश्र उनसे मिलने के लिए आये। मिश्र जी बोले- ``मालवीय जी! मैंने तो अपने में बहुत सहनशीलता बढ़ा ली है। आप चाहे तो सौ गालियां देकर देख ले,मुझे क्रोध नही आयेगा´´। मालवीय जी हँसते हुए बोले- ``मिश्र जी! आपकी बात तो ठीक हे पर क्रोध की परीक्षा तो सौ गाली देने के बाद होगी। उससे पूर्व ही पहली गाली में मेरा मुँह गंदा हो जाएगा।´´ मालवीय जी के इस उत्तर को सुनकर मिश्र जी नत मस्तक हो गए। 

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