पं. मदनमोहन मालवीय बम्बई में ठहरे हुए थे। रात्रि के समय बम्बई के प्रसिद्ध विद्वान पं. रमापति मिश्र उनसे मिलने के लिए आये। मिश्र जी बोले- ``मालवीय जी! मैंने तो अपने में बहुत सहनशीलता बढ़ा ली है। आप चाहे तो सौ गालियां देकर देख ले,मुझे क्रोध नही आयेगा´´। मालवीय जी हँसते हुए बोले- ``मिश्र जी! आपकी बात तो ठीक हे पर क्रोध की परीक्षा तो सौ गाली देने के बाद होगी। उससे पूर्व ही पहली गाली में मेरा मुँह गंदा हो जाएगा।´´ मालवीय जी के इस उत्तर को सुनकर मिश्र जी नत मस्तक हो गए।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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