शनिवार, 13 सितंबर 2008

आत्मा

1) मौन और एकान्त आत्मा के सर्वोत्तम मित्र है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
2) मन के कहे अनुसार करने से हमे क्षणिक प्रसन्नता प्राप्त होती हैं, स्थायी प्रसन्नता पाने के लिये आत्मा के कहे अनुसार चलना चाहिये।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
3) मनुष्य शरीर नहीं आत्मा हैं, उसे चाहिये कि वह शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्व दे।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
4) मनुष्य व्यवसाय करता हैं पेट के लिये। और सृजन करता हैं आत्मा और परमात्मा की प्रसन्नता के लिये।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
5) विकसित आत्मा को ही दूसरे शब्दो में परमात्मा कहा जाता है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
6) विवेक और ज्ञान भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
7) फिजूलखर्ची करना अपनी आत्मा बेचना है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
8) प्रार्थना वही कर सकता हैं जिसकी आत्मा उच्च हो।
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9) ज्ञान ही ऐसी निधी हैं जो आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतरो तक यात्रा करती है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
10) संसार में सबसे शक्तिशाली मनुष्य वही हैं जो आत्मावलम्बी है।।
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11) जीवन के क्रियाकलाप बाहरी अनुशासन के बजाय आत्मानुशासन द्वारा संचालित होने चाहिये।
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12) जो उपदेश आत्मा से निकलता हैं, वही आत्मा पर सबसे ज्यादा कारगर होता है।
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13) अपनी आत्मा की शान में विश्वास न करने वाला वेदान्त की नजर में नास्तिक है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
14) अपनी आत्मा ही सबसे बडी मार्गदर्शकमार्गदर्शक है।
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15) आत्मा की पुकार अनसुनी नहीं करे।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
16) आत्मा का निर्मल रुप सभी ऋद्धि-सिद्धियों से परिपूर्ण होता है।
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17) आत्मज्ञान, आत्मविश्वास और आत्मसंचय यही तीन जीवन को बल एवं शक्ति प्रदान करते है।
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18) रुप सिर्फ ऑंखो तक पहुंचता हैं और गुण सीधे आत्मा तक।
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19) यह शरीर आत्मा को अपना लक्ष्य पूरा करने के लिये मिला हैं, मन और इन्द्रिय की वासना पूर्ति के लिये नही।
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20) क्षमा करने वाले की आत्मा पवित्र होती है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
21) इन्द्रियां सदैव आत्मा के विरुद्ध संघर्ष करती हैं। अत: सतत् सावधान रहो।
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22) कोई भी आरोप इतना सशक्त नहीं जो आत्मा की पवित्रता के आगे ठहर सके।
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23) आत्मबल का पूरक परमात्मबल है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
24) पाप सभी बीमारियों से बुरा हैं, क्योकि वह आत्मा पर चोट करता है।

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