एक-एक क्षण का महत्त्व हैं, हम सक्रिय हो जायें।
गुरु की जन्म शताब्दी को हम गरिमापूर्ण बनाये।
पहले स्वयं आत्मबल अर्जित करें साधनाओं से,
करना हैं संघर्ष धैर्य से हमको बाधाओं से,
गुरु के आदर्शों के हम हो अति उत्कृष्ट नमूना,
रहे न कोई कोना अपना, गुरु प्रभाव से सूना,
ब्रह्मवाक्य जैसे सूत्रों को जीवन में अपनायें।
गुरु की जन्म शताब्दी को हम गरिमापूर्ण बनाये।
प्रामाणिक बन नगर-गाँव , घर-घर हमको जाना हैं,
जन-जन तक सन्देश युगपुरुष का फिर पहुँचाना हैं,
जनसाधारण या विशिष्ट जन हो, सब तक जायेंगे,
गुरु के तप का निज वाणी में हम प्रभाव पाएंगे,
तम के हर घेरे तक पहुँचें उनकी दिव्य प्रभाएँ।
गुरु की जन्म शताब्दी को हम गरिमापूर्ण बनाये।
परिचित होंगे तो आकर्षण उनके प्रति जागेगा,
प्रश्न-तर्क होंगे, प्रबुद्धजन फिर प्रमाण माँगेगा,
जन-जन को समझाने की सरलीकृत पद्धति होगी,
किन्तु मनीषी जन के लिए पृथक ही प्रस्तुति होगी,
इसके लिए निरन्तर अपनी हम पात्रता बढा़एँ।
गुरु की जन्म शताब्दी को हम गरिमापूर्ण बनाये।
समय बहुत थोड़ा हैं लेकिन काम बहुत भारी हैं,
ध्वंस हो रहा किंतु सृजन-अभियान सतत जारी हैं,
यदि संकल्पित होंगे हम, विश्वास न डिग पायेगा,
गुरु से साहस तथा शक्ति फिर हर परिजन पाएगा,
परिवर्तन की इस वेला में मिलकर कदम बढा़एँ।
गुरु की जन्म शताब्दी को हम गरिमापूर्ण बनाये।
-शचीन्द्र भटनागर
अखण्ड ज्योति अगस्त 2008
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें