शनिवार, 13 सितंबर 2008

गुरु की खोज

तुम्हारे सूत्र जीवन मे नही हमने उतारे,
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे |

कभी जब तेज धारो मे बहावों मे घिरे हम,
हुऐ अक्षम पकड़ने मे सभी सक्षम सिरे हम,
तुम्ही ने स्नेह-संरक्षण हमे उस क्षण दिया,
स्वयम् दायित्व शिष्यों का सदा तुमने लिया है,

कृपा से पा गए है हम सबल अविचल किनारे |
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे |

तनिक सोचे की हमने किस तरह जीवन जिया है,
किसी के अश्रु पोंछे क्या किसी का दुःख पिया है ?
कभी देवत्व का आलोक हममे दीख पाया है ?
हमारे आचरण ने क्या किसी का मन लुभाया है ?

हमारे प्यार ने कितने यहाँ जीवन सुधारे,
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे |

स्वयम् अपनी समीक्षा का रखा क्या ध्यान हमने ?
स्वयम परिवार का कितना किया निर्माण हमने ?
किया क्या अन्य का आदर, सहज सत्कार हमने ?
किया कितने सुझावों को यहाँ स्वीकार हमने ?

कभी यह प्रश्न जीवन मे नही हमने विचारे |
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे |

हमे है लोकसेवी बन सभी के मध्य जाना,
न छिप सकता कभी गुण-दोष का अपना खजाना,
तभी तो स्वच्छ रखना है हमे प्रत्येक कोना ,
कथन से पूर्व है हमको स्वयम् उत्कृष्ट होना,

जरुरी है की हर परिजन स्वयम् का मन बुहारे |
रहे बस खोजते निशिदिन तुम्हारे ही सहारे |

--शचीन्द्र भटनागर


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