शनिवार, 13 सितंबर 2008

उपदेश की योग्यता

एक बालक मिठाई बहुत खाता था, उसकी यह आदत उसके स्वास्थ्य को बिगाड़ रही थी। बालक मानता नहीं था। निदान के लिए उसकी माता उसे रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा का अधिक प्रभाव पड़ने की आशा से उनके पास ले गई और प्रार्थना की कि आप इसे उपदेश देकर मिठाई खाना छुड़ा दें। परमहंस ने उसे एक सप्ताह बाद आने को कहा। महिला चली गई। एक सप्ताह बाद आई, तब उन्होंने बालक को उपदेश दिया और उसने मिठाई छोड़ भी दी।

महिला ने एक सप्ताह विलंब लगाने का कारण पूछा, तो परमहंस ने कहा, तब तो मैं मिठाई स्वयं खाता था। जब बालक को उपदेश देना आवश्यक प्रतीत हुआ, तो पहले मैंने स्वयं मिठाई छोड़ी , तब बालक को कहा। जो करता है, उसी की शिक्षा का प्रभाव भी पड़ता है।

यह प्राथमिक आवश्यकता है कि व्यक्ति पहले अपने चिन्तन को देखे। लोकसेवी व सत्साहस हेतु संघर्ष करने के लिए आगे आने वाले के लिए तो यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है।

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