शनिवार, 13 सितंबर 2008

युगानुरुप परिवार

विश्व भर में हैं हमारा पारिवारिक संगठन,
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

हो गया अब तों मिशन का व्योम-सा विस्तार हैं,
विश्व के हर छोर को छूता विषद परिवार हैं,
यत्न हो अपना कि घर में भी जटिल शैली न हो,
दृष्टि सबकी स्वच्छ हो, दिग्भ्रांत मटमैली न हो,

धैर्यपूर्वक हम करें हर प्रश्न -शंका का शमन।
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

विश्व-मन में आस्था फिर आज अंकुराने लगी ,
अब विधेयात्मक पुन: होने लगी हैं जिंदगी,
उस सुखद वातावरण की सृष्टि घर में भी करें,
भावना संवेदना-सहकार की, सबमें भरें ,

हो घरों में भी उसी निर्दिष्ट पथ का अनुसरण।
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

विश्व के परिवार का लघु रुप घर परिवार हो,
हो सहज सामीप्य सब में, आत्मवत् व्यवहार हो,
हो नहीं संकीर्णता, सबकी सुविस्तृत सोच हो,
दोष-स्वीकृति में किसी को भी नहीं संकोच हो,

हो सरल, विश्वास -आधारित परस्पर आचरण।
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

हर सुखद परिवार हो ऐसा, कि ज्यों उद्यान हो,
वृक्षवत् सुंदर सुगढ़ व्यिक्तत्व का निर्माण हो,
हर विटप को संस्कृति से यूँ सतत पोषण मिले,
वह न झंझावात के आघात से तिल भर हिले,

हो न पाए फिर वहां कोई विषेला संक्रमण।
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

उस विषद परिवार का प्रत्येक घर आदर्श हो,
कुप्रथाओं से सभी का संगठित संघर्ष हो,
शान्ति हो, संतोष हो, मन हो न कोई क्लेश में,
हो सहज शालीनता व्यवहार, वाणी, वेश में,

आधुनिकता हो वहां , पर हो न कृत्रिम आवरण।
हो उसी अनुरुप घर-परिवार का वातावरण।

अखण्ड ज्योति दिसम्बर २००७

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