रविवार, 11 अक्टूबर 2009

आत्म-निरीक्षण करें


वाङ्मय 'युग निर्माण योजना-दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम' (पृष्ठ १.१६ से १.१७) से संपादित 

रात्रि सदा नहीं रहती । अंधेरा सदैव कहाँ छाया रहता है? विपत्ति की घटाएँ निरंतर कब घुमड़ती हैं? ग्रहण देर तक कहाँ बना रहता है? अशुभ घड़ियाँ आती तो हैं, पर देर तक नहीं रहतीं । दुःख, अपमान, संकट, घाटा, दुर्भाग्य, विग्रह आदि के क्षण आते तो हैं, पर जल्दी ही चले भी जाते हैं । 

मनुष्य के ऊपर इन दिनों असुरता का आक्रमण हुआ है और सूर्य-चन्द्र पर पड़ने वाली राहु-केतु की छाया की तरह ग्रहण लग गया है । यह असमंजस की घड़ी अधिक समय तक स्थिर नहीं रह सकती । अंधकार के बाद प्रकाश आता ही है । अब प्रभात के सूर्योदय का प्रकाश उदय होने में देर नहीं । ऊषाकाल की आभा प्राची में लालिमा बनकर प्रकट हो रही है । 

कहना न होगा कि अगणित रूपों में प्रस्तुत विपत्तियों का एक ही कारण है-मानवीय कर्तव्य में निकृष्टता का समावेश और उसका निमित्त है अशुद्ध चिन्तन एवं विकृत दृष्टिकोण । सड़े तालाब में से लाख-करोड़ मच्छर पैदा होते हैं । एक-एक मच्छर को पकड़ना और मारना कठिन है । तालाब की सफाई करने से ही उस विपत्ति से छुटकारा मिलेगा । विपत्तियाँ और विकृतियाँ भौतिक अवश्य हैं पर उनका स्थायी समाधान दार्शनिक आधार पर ही किया जा सकता है । युग परिवर्तन का मूल उद्गम इसी पर केन्द्रित है । भगवान वह प्रक्रिया खड़ी करने जा रहे हैं, जिसमें मनुष्य को अशुद्ध चिन्तन के दुष्परिणामों का भान हो-वह अपनी भूल समझे और उसे सुधारने के लिए उलट पड़े । यह प्रक्रिया जिस क्रम से सम्पन्न होगी, उसी अनुपात से विकृतियों के समाधान अनायास ही अप्रत्याशित रूप से निकलते चले आयेंगे । 

दूसरा दूसरों को न तो खींच सकता है और न दबा सकता है । बाहरी दबाव क्षणिक होता है । बदलता तो मनुष्य अपने आप है, अन्यथा रोज उपदेश, प्रवचन सुनकर भी इस कान से उस कान निकाल दिये जाते हैं । दबाव पड़ने पर बाहर से कुछ दिखा दिया जाता है और भीतर कुछ बना रहता है । इन विडम्बनाओं से क्या बनता है । बनेगा तो अन्तःकरण के बदलेने से, और इसके लिए आत्मप्रेरणा की आवश्यकता है । 

इन दिनों यही होने जा रहा है । सबसे पहले जाग्रत् आत्माओं के भीतर आत्मपरिवर्तन की तिलमिलाहट पैदा होगी । वे गहराई से आत्मा-निरीक्षण करेंगे । अन्धी भेड़ों के गिरोह में से अपने को अलग निकालेंगे और स्वतन्त्र चिन्तन करेंगे । 'लोग ऐसा करते हैं तो हम भी ऐसा करेंगे' का परावलम्बन बहिष्कृत होगा । विशेषतया तब, जबकि जनमानस में घोर अविवेक और गहन अनाचार ने गहरी जड़ें जमा ली हों । ऐसे समय में दूसरों का प्रभाव ग्रहण करना, उनका अनुगमन-अनुकरण करना, उन्हीं की तरह अपने को पतन के गहरे गर्त में डाले रहना उचित नहीं । 

युग परिवर्तन का आरम्भ व्यक्ति परिवर्तन की उग्र प्रक्रिया के साथ आरम्भ होगा । इसके लिए भगवान ऐसा सूक्ष्म प्रेरणा प्रवाह उत्पन्न कर रहे हैं, जो हर जीवित और जाग्रत् आत्मा को व्याकुल, बेचैन कर दे । अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने के लिए हर घड़ी विवश कर और उसे घसीटकर उस स्थान पर खड़ा कर दे, जहाँ स्वतंत्र चिन्तन अनिवार्य हो जाता है । विवेक का प्रकाश जब अपनाया जाता है तब अँधेरे की आशंकाएँ और विभीषिकाएँ सभी तिरोहित हो जाती हैं । ईश्वरीय प्रकाश विवेक के रूप में अवतरित होता है और जहाँ भी वे दिव्य किरणें पड़ती हैं, वहाँ अंधानुकरण एवं पूर्वग्रहों का विनाश होता है । मनुष्य इतना साहस अनुभव करता है कि औचित्य के मार्ग पर अकेला ही चल पड़े । भले ही उसके तथाकथित शुभचिन्तक उसके लिए उसे रोकते, टोकते ही रह जाएँ । 

आत्मपरिवर्तन के साथ-साथ यही जाग्रत् आत्माएँ विश्व परिवर्तन की भूमिका प्रस्तुत करेंगी । जाग्रत आत्माओं में एक असाधारण हलचल इन दिनों उठ रही है । उनकी अन्तरात्मा उन्हें पग-पग बेचैन कर रही हैं, ढर्रे का पशु जीवन नहीं जिएँगे, पेट और प्रजनन के लिए, वासना और तृष्णा के लिए जिन्दगी के दिन पूरे करने वाले नरकीटों की पंक्ति में नहीं खड़े रहेंगे, ईश्वर के अरमान और उद्देश्य को निरर्थक नहीं बनने देंगे । लोगों का अनुकरण नहीं करेंगे, उनके लिए स्वतः अनुकरणीय आदर्श बनकर खड़े होंगे । यह आन्तरिक समुद्र मन्थन इन दिनों हर जीवित और जाग्रत् आत्मा के अन्दर इतनी तेजी से चल रहा है कि वे सोच नहीं पा रहे कि आखिर यह हो क्या रहा है वे पुराने ही हैं पर भीतर कौन घुस पड़ा, जो उन्हें ऊँचा सोचने के लिए ही नहीं, ऊँचा करने के लिए भी विवश, बेचैन कर रहा है! निश्चित रूप से यह ईश्वरीय प्रेरणा का अवतरण है । 

नव जागरण का प्राथमिक श्रेय निश्चित क्रम से सुसंस्कारी जाग्रत् आत्माओं को मिलेगा । वे ही आगे आवेंगी, मशाल की तरह जलेंगी और सर्वत्र प्रकाश उत्पन्न करेंगी । अविवेक और अनौचित्य के बन्धनों से वे स्वयं मुक्त होंगी । और अपने आदर्शों से असंख्य लोगों को अनुगमन के लिए प्रभावित ही नहीं, बाध्य भी करेंगी । 

युग निर्माण परिवार ऐसी ही जाग्रत् और सुसंस्कारी आत्माओं का समूह है । संयोग ही कहना चाहिए कि उसे इन बिखरे हुए मणि-माणिक्यों को एक सूत्र में आबद्ध होकर एक बहुमूल्य माला के रूप में गुँथ जाने का अवसर मिल गया । अगले ही दिनों युग निर्माण परिवार का प्रत्येक घटक अपनी वह भूमिका प्रस्तुत करेगा, जिसका विस्तार युग परिवर्तन के रूप में असंदिग्ध रूप में दृष्टिगोचर हो सके ।

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