रविवार, 20 सितंबर 2009

रामकृष्ण देव

एक धनी व्यक्ति रामकृष्ण देव के विषय में सुनकर उनके पास भेंट हेतु धन देने आया। दस हजार रूपये के सिक्के थे। उनने कहा-``इन्हें स्वीकार करें और साधना का शिक्षण दें।´´रामकृष्ण देव बोले-``साधना में पैसे की जरूरत क्या ! पहले इससे मुक्ति पा। ´´``पर ये तो मैं आपके लिए लाया हूँ।´´ श्री ठाकुर रामकृष्ण देव बोले-``तो ऐसा कर इन्हें गंगाजी में चढाकर आ जा। हमें चढ़ाया, गंगाजी को चढ़ाया- एक ही बात है।´´ काफी देर बीत गई। वह लौटकर नहीं आया। ठाकुर देखने गए तो पाया कि वह एक सिक्का बडे़ दुख के साथ गंगाजी में ड़ाल रहा है। डाल तो रहा है, पर बड़े कष्ट के साथ । ठाकुर बोले-``सब एक साथ फेंक दे। मोह मत कर। जब तक ऐसा नही करेगा, साधना की पात्रता नहीं विकसित हो होगी।´´ उस धनी व्यक्ति ने ऐसा ही किया। हम भी तो कुछ उसी की तरह हैं ना ! हमारी कामनाएँ छूटती ही नहीं है। सौचते हैं-धीरे-धीरे इच्छाएँ छोड़ देंगे मगर छूटती ही नही हैं।


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