सर्वविदित हैं कि ऋषि एवं मुनि ये दो श्रेणिया अध्यात्म क्षेत्र की प्रतिभाओं में गिनी जाती रहीं हैं। ऋषि वह जो तपचर्या द्वारा काया का चेतनात्मक अनुसन्धान कर उन निष्कर्षो से जन समुदाय को लाभ पहुँचाये तथा मुनिगण वे कहलाते हैं, जो चिन्तन-मनन, स्वाध्याय द्वारा जनमानस के परिष्कार की अहम् भूमिका निभाते हैं। एक पवित्रता का प्रतीक हैं तो दूसरा प्रखरता का।
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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