सीखने की इच्छा रखने वाले के लिए पग-पग पर शिक्षक मौजुद हैं पर आज सीखना कौन चाहता है ? सभी तो अपनी उथली जानकारी के अहंकार के मद में ऐठे-ऐंठे फिरते हैं। सीखने के लिए हृदय का द्वार खोल दिया जाये तो बहती हुई वायु की तरह शिक्षा-सही अर्थो मे विद्या स्वयं ही हमारे अंतःकरण में प्रवेश करने लगेगी।
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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