सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

उस राक्षस का नाम हैं आलस्य......

1) सुख को भोगना दुःख को निमन्त्रण देना है।
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2) सुख पदार्थो में नहीं वह तो मन की एकाग्रता द्वारा स्वरुप स्थिति में है।
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3) सुख व सफलता भाग्य और प्रतिभा से नहीं अपितु उचित तैयारी और निश्चय से प्राप्त होती है।

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4) सुख व आनन्द में अन्तर - सुख आकर चला जाता हैं, आनन्द आ कर जा नहीं सकता।

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5) सुख चाहने वाले को वर्तमान में पाप करना पडेगा और भविष्य में भयंकर दुःख भोगना पडेगा।

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6) सुखदायी परिस्थिति में पुण्य कटते हैं और दुःखदायी परिस्थिति में पाप कटते है।

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7) सत्य की चेष्टा कभी व्यर्थ नहीं जाती।

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8) सुखदायी परिस्थिति सेवा करने के लिये हैं और दुःखदायी परिस्थिति सुख की इच्छा का त्याग करने के लिये है।

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9) सुबह शाम की हवा, लाख रुपये की दवा।

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10) सुशिक्षित की अन्तिम परख हैं कि उसे भीषण परिस्थितियों में भी निराश नहीं होना चाहिये।

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11) सुविधा और प्रगति में एक को चुनना हो तो समझदारी सदा असुविधाएँ अपनाकर ऊँचे उठना, आगे बढना स्वीकार करेंगी।

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12) सुस्ती इतने धीरे चलती हैं कि दरिद्रता उसे फौरन पकड लेती है।

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13) सुन्दर चेहरा आकर्षक भर होता हैं, पर सुन्दर चरित्र की प्रामाणिकता अकाट्य है।

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14) सुनने वालो की इच्छा के बिना वक्ता को सत्संग के रहस्य की बातें नहीं सुनानी चाहिये।

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15) सुगन्ध के बिना पुष्प, तृप्ति के बिना प्राप्ति, ध्येय के बिना कर्म व प्रसन्नता के बिना जीवन व्यर्थ है।

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16) सफल नाविक वही हैं, जो अशांत समुद्र में भी मंजिल तक पहुँचे।

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17) सफलता की एक अनिवार्य शर्त हैं-ध्येय के प्रति अटूट निष्ठा।

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18) सफलता की मौलिक आवश्यकता विनम्रता है।

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19) सफलता का कोई एक पल नहीं, विफलता की गोद में ही गीत है। हार कर भी जो नही हारा कभी, सफलता उसके हृदय का गीत है।

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20) सफलता के मार्ग पर चलने वाले प्राणी को कभी - कभी एक राक्षस आकर दबोच लेता हैं उस राक्षस का नाम हैं आलस्य।

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21) सत्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनन्दन यह हैं कि हम उसको आचरण में लायें।

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22) सफलता उन्ही को प्राप्त होती हैं जिनकी प्रवर्त्ति निश्चयात्मक होती है।

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23) सफलता न मिलने की पीछे कई वजह हो सकती हैं, परन्तु सफलता मिलने के पीछे वजह होगी - सिर्फ कौशिश और आत्मविश्वास।

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24) सफलतायें उपहार में किसी को नहीं मिली। प्रचण्ड मनोबल और प्रखर पुरुषार्थ के मूल्य पर उन्हे खरीदा जाता है।

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