स्मरण रखने योग्य यह हैं कि पदार्थ परक वैभव मात्र निर्वाह, विलास या प्रदर्शन के काम आता हैं। उसके सहारे महानता नहीं सधती। यदि साधनो के सहारे बडे काम हो सके होते तो अब तक महामानवो को मिल सकने वाली गरिमा भी श्रीमन्तों ने खरीद ली होती, किन्तु वैसा कभी हुआ नहीं है। धन कुबेरों की, चतुर बुद्धिमानो की, शस्त्र सज्जित योद्धाओं की अपने-अपने क्षेत्र में उपयोगिता हैं, पर जहा तक युग परिवर्तन जैसे महान् प्रयोजनो का सम्बन्ध हैं वहा मात्र संकल्प के धनी, लिप्साओं को कुचलने वाले कालजयी ही उस भार को वहन करने में समर्थ होते हैं जिसे युग देवता किन्ही जाँचे परखे लोगों को ही प्रदान करते रहे हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें