रविवार, 16 अक्टूबर 2011

सर्वोत्तम मानवीय मूल्य....

1) सद्ग्रन्थ ऐसे शिक्षक हैं , जो बिना बेंत मारे और कटु शब्द कहे हमें ऊँची शिक्षा प्रदान करते है।
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2) सदा सर्वदा ईश्वर पर निर्भर रहना चाहिये। इससे धीरता, वीरता, गभ्भीरता, निर्भयता और आत्मबल की वृद्धि होती है।
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3) सदाचार से आत्मचेतना की अभिवृद्धि होती है।
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4) स्व का पर के लिये समग्र समर्पण ही असली समर्पण है।
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5) स्व-मूल्यांकन की एक ही कसौटी सद्गुणों का विकास।
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6) स्वयं को जाने।
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7) स्वयं को जानना जगत की सबसे बडी विलक्षणता है।
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8) स्वयं के सत्वगुणों की अतिन्यूनता के कारण हमें दूसरों के गुण भी नहीं दिखाई देते है।
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9) स्वयं के दुगुर्णो का चिन्तन व परमात्मा के उपकारों का स्मरण ही सच्ची प्रार्थना है।
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10) स्वयं प्रसन्न रहना, दूसरों को प्रसन्न करना और तालमेल बिठाकर रहना, यही हैं ब्रह्म और यही हैं उसकी उपासना।
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11) स्वीकार की हुयी गलती एक विजय है।
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12) स्वाध्याय युक्त साधना से ही परमात्मा का साक्षात्कार होता है।
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13) स्वाध्याय करते रहने से उपासना में चमक आती हैं। संयम का पालन करने से उपासना प्रभावपूर्ण बनती हैं। सेवा के संग जुडी उपासना ईश्वर की निकटता का अनुभव कराती है।
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14) स्वाध्याय को जीवन में निश्चित स्थान दो।
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15) स्वार्थी, दानव जुल्म ढहाते, परमार्थी ही देव कहाते।
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16) स्वार्थ का थोडा-सा त्याग अन्दर गहरे सन्तोष का अनुभव बनता है।
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17) स्वार्थ नहीं परमार्थ महान्, वंश नहीं गुण कर्म प्रधान।
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18) स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है।
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19) स्वार्थ, लापरवाही और अहंकार की मात्रा का बढ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
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20) स्वावलम्बन और सहयोगात्मक उ़द्योग दोनो नागरिक जीवन की कुन्जी है।
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21) स्वावलम्बन-आत्मनिर्भरता, सफलता का अन्तिम साधन है।
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22) स्वावलम्बन, नियमितता और अनुशासन मनुष्य के व्यक्तित्व को सॅवारते तथा भविष्य को उज्ज्वल बनाते है।
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23) सर्वोत्तम कार्य वह हैं जिसमें सबका भला होवे।
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24) सर्वोत्तम मानवीय मूल्य - अभय, तप, सत्य, अहिंसा, सरलता, त्याग, शान्ति, दया, क्षमा, धैर्य एवं तेज है।
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