1) स्वेच्छा से सि़द्धान्तो के प्रति समर्पित हो जाने को आत्मबल कहते है।
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2) स्वर्ग कोई स्थान या लोग विशेष हैं यह हमने कभी नहीं माना। स्वर्ग उत्कृष्ट दृष्टिकोण को कहते हैं जो भी कृत्य अपने से बनता हैं उसमें उत्कृष्टता और आदर्शवादिता घोल लेते है। - परमपूज्यगुरुदेव।
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3) सुख को भोगना दुःख को निमन्त्रण देना है।-------------------
4) सर्वप्रथम माता-पिता के आचरण से ही बच्चे शिक्षा ग्रहण करते है।
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5) सर्वप्रथम स्वयं पर विश्वास रखों फिर ईश्वर में।-------------------
6) सर्वदा क्रोध से अपनी तपस्या की रक्षा करो।-------------------
7) सच और झूठ छिपाये नहीं छिपता है।-------------------
8) सच्ची प्रगति विचारों के अनन्त सिलसिले के सहारे ज्यादा स्वतंत्रता की ओर ले जाती है।-------------------
9) सच्चा भक्त वह हैं जिसमें तडपन हो, करुणा हो और सक्रियता हो।-------------------
10) सच्चा प्रेम संयोग में भी वियोग की मधुर वेदना का अनुभव करता है।-------------------
11) सच्चा प्रेम सेवा, करुणा एवं श्रद्धा के रुप में ही प्रकट होता है।-------------------
12) सच्चा सुख स्वार्थ नाश में हैं और उसे स्वयं के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं दिला सकता।-------------------
13) सच्चा दोस्त वह है जो अपने दोस्त की उन्नति में खुश हो।-------------------
14) सच्चा त्याग वही हैं जो त्याग की स्मृति का भी त्याग करा दे।-------------------
15) सच्चाई और इमानदारी से प्रेरित संघर्ष ही स्थायी प्रगति का आधार है। अकेला संघर्ष ही काफी नहीं, उसमें सत्य का समन्वय होगा, तो ही भीतरी शक्ति का आशीर्वाद मिलेगा।-------------------
16) सच्चाई और सफाई वाले ही प्रभु प्रिय और लोकप्रिय होते है।-------------------
17) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।-------------------
18) सच्चे मन से भगवान के लिये किया गया पुरुषार्थ कभी भी निष्फल नहीं होता।-------------------
19) सच्चे मित्र की आत्मीयता की पहचान कठिनाइयों में होती हैं।-------------------
20) सच्चे मित्र के सामने दुःख आधा और खुशी दोगुनी हो जाती है।-------------------
21) सच्चे शिक्षक का आरम्भ साक्षरता से होता हैं और समापन सुसंस्कारिता के उच्चस्तर पर पहुँचने तक अनवरत चलता रहता है।-------------------
22) सच्चे भक्तो की पहचान मात्र इसी एक कसौटी पर होती हैं कि वे भगवान के कितने काम आये।-------------------
23) सुख ऊपर पत्थर पडो, जो राम हृदय से जाय। बलिहारी वा दुःख की जो हर पल राम रटाय। कबीरदासजी।-------------------
24) सुख बाँटने की वस्तु है और दुःख बॅटा लेने की । इसी आधार पर आन्तरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्भाव प्राप्त होता हैं। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है।-------------------
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