1) सबसे अच्छी दुनिया वह होती हैं जिसमें ईश्वर तो होता हैं लेकिन कोई धर्म नही।
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2) सब्र सबसे बडी प्रार्थना है।
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3) समय के एक-एक क्षण का उपयोग करें बेकार न बैठे।---------------
4) समय सम्पदा को प्रमाद के श्मशान में जलाने वालो को आत्म-प्रताडना की आग में जलना पडता है।---------------
5) समय से सब कुछ खरीदा जा सकता है।---------------
6) समय जैसी मूल्यवान संपदा का भंडार भरा होते हुए भी जो नियोजन कर धन, ज्ञान, प्रतिभा तथा लोकहित को नहीं पा सकते, उनसे अधिक अज्ञानी किसे कहा जाये।---------------
7) समय और श्रम जीवन देवता की सौपी अमूल्य अमानते है।---------------
8) समय, सत्य के अतिरिक्त हर वस्तु को कुतर खाता है।---------------
9) सम्मान की पूँजी देने पर मिलती हैं, बाँटने पर बढ़ती और बटोरने पर समाप्त हो जाती है।---------------
10) समर्पण जितना समग्र होगा, गुरु की चेतना, सिद्धियाँ, शक्तियाँ, सामर्थ्य को हम उतना ही व्यापक रुप में धारण कर सकेंगे। जीवन उतना तेजी से परिवर्तन होने लगेगा। सभी रहस्य, सभी तरह के सृजन-कौशल अपने आप ही जाग्रत होते चले जायेंगे।---------------
11) समस्याएँ चाहे जैसी हो, घबराइये नहीं, इन्हें परीक्षा समझ कर पास कीजिए।---------------
12) सीखी गयी बात की विस्मृति हो सकती हैं, परन्तु स्वीकार की गयी बात की विस्मृति नहीं हो सकती है।---------------
13) सभी भाई-बहिन भगवान् को हृदय से प्रणाम करे। प्रणाम करने वाले का पुर्नजन्म नहीं होता है।---------------
14) सभी प्रकार के अंत अपने साथ नई शुरुआत का संदेश लेकर आते है।---------------
15) सपने आपके जीवनदाता द्वारा आपके लिए निर्धारित किए गए लक्ष्य है।---------------
16) साधक का काम हैं-अपने मत का अनुसरण करना तथा दूसरे के मत का आदर करना।---------------
17) साधक का पहला लक्षण हैं धैर्य। धैर्य की परीक्षा ही भक्ति की परीक्षा है।---------------
18) साधक को इस बात की चिन्ता करनी चाहिए कि नैतिकता सुरक्षित रहे।---------------
19) साधक, योगी, मनस्वी, तपस्वी आदि में दरद को झेलने की अपार क्षमता होती है।---------------
20) साधु का क्षण और अन्नक्षेत्र का कण अत्यधिक महत्वपूर्ण है।---------------
21) साधु, विधवा और वृद्ध के लिये भगवद्भजन के सिवाय क्या काम बाकी रहा ? ये भजन न करे तो भगवान् नाराज होते है।---------------
22) साधन एक पराक्रम हैं-संघर्ष हैं, जो अपनी ही दुष्प्रवर्त्तियों से करना होता है।---------------
23) साधन करने से दोष दृष्टि कम हो जाती हैं। जो साधन नहीं करता केवल शास्त्र पढता हैं, बातें सीखता हैं, उसको दूसरों में दोष दीखने लगता है।---------------
24) साधन हमारे बहिरंग जीवन को सम्पन्न बनातें हैं, साधना हमारे अन्तरंग जीवन को पवित्र बनाती है।---------------
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